Tuesday, April 27, 2010

poem
ND
हाथों की अनंत रेखाएँ,
चिकनी, समतल या कटी-फटी,
कभ‍ी छोटी या लंबी दौड़ती सी।
हर रोज मैं इन्हें गौर से देखा करती हूँ,

जब मिल जाती है अचानक सफलता,
तो इन लकीरों में एक,
नई लक‍ीर खोज लेती हूँ,
कि भाग्य साथ दे रहा है।

जब प्रयत्नों के बाद भी,
असफलता ही हाथ आती है,
तो एकाध कटी-फटी रेखा को देख,
बनाती हूँ पॉजिटीव एटीट्यूड,
कि किस्मत ही खराब है !

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