Sunday, April 4, 2010

काव्य-संसार
ND
माँ कभी निराश नहीं होती,
लाख बदल जाएँ नजरें लाडलों की,
दिल में उसके कभी खटास नहीं होती।।

लेखक कभी निराश नहीं होता
लाख बदल जाएँ धारणाएँ समाज की,
लेखनी में उसके कभी विषाद नहीं होता।।

शिक्षक कभी निराश नहीं होता,
चाहे बदलती रहें परंपराएँ शिक्षा की
ज्ञान वीणा को उसकी वनवास नहीं होता।।

काव्य-संसार
ND
जिस दिन निराश होगी माँ
अपनी ममता को घृणा में बदल,
जिस दिन निराश होगा लेखक
अपनी लेखनी को कर घायल,
या जब निराश होगा शिक्षक
होकर अज्ञान का कायल,
वह दिन सृष्टि पर
महाप्रलय का दिन होगा।।

1 comment:

  1. समाज जीवन का यथार्थ इस कविता पर अंकित है |
    कृष्ण कान्त चंद्रा

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