गरीब की लडकी
गरीब की लडकी
नहीं सोती है पूरी नींद ,करती माँ की हिदायत का पालन
कि नींद में न आ जाए कोई सपना सलोना ,
जिसे पाने को मचल पड़े मन की नदी ,
अपने प्रवाह को अनियंत्रित करके .
गरीब की लडकी
जानती है सीमाएं अपनी , कि
अव्वल तो कोख में ही मार दी जाएगी,
जी गई तो अनचाही सी दुलार दी जाएगी,
पढ़ना चाहेगी तो ब्याह दी जाएगी ,
बोझ सी दूजे आँगन उतार दी जाएगी।
गरीब की लडकी
फिर भी झपका ही लेती है उनींदी पलकें,
देखने को कोई सपन सलोना ,
क्योंकि बचपन में दादी की कहानी में सुना था कि
सपने भी कभी-कभी सच हुआ करते हैं।
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