Friday, April 23, 2010

ये क्या कह दिया आपने!

ये क्या कह दिया आपने!
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हमारी शारीरिक संरचना में जबान का जितना महत्व है, हमारी सामाजिक मान-प्रतिष्ठा बनाए रखने में भी यह उतना ही योगदान देती है। खासियत यह कि जबान खुद तो बड़ी कुशलता से 32 दाँतों के बीच भी अपना अस्तित्व, अपनी महत्ता बनाए रखती है, मगर हमारी ओर से जरा भी ढील हुई कि इसे तुरंत फिसलने का मौका मिल जाता है और ये जो फिसलती है तो कठिनाई से, जोड़-तोड़ करके बनाए गए रिश्तों के महल भर-भराकर ढहने लग जाते हैं।

अक्सर हम अपनी वाचालता के चलते कई बार ऐसी बातें बोल जाते हैं, जो भले ही सही हों, पर अवसर के अनुरूप नहीं होती। ऐसे में सामने वाले के अहं पर चोट लगती है और जबान के इस वार को वह ताउम्र याद रखता है।

श्रावी अपनी सहेली के साथ एक मीटिंग में गई। वहाँ विविध प्रोफेशन्स पर चर्चा चली। ब्यूटी पार्लर चलाने की बात आते ही श्रावी नाक-भौं सिकोड़कर बोली, 'ये भी क्या काम है... पैसों के चक्कर में दूसरों के हाथ-पाँव मलो, मैल साफ करो...' श्रावी तो अपनी रौ में बोल गई, मगर उसे ये ध्यान ही न रहा कि मीटिंग को "होस्ट" करने वाली महिला स्वयं ब्यूटी पार्लर चलाती है। उसने श्रावी की सहेली को तो आड़े हाथों लिया ही, श्रावी को इस समूह की सदस्यता भी नहीं लेने दी।

कई बार दफ्तर में भी एक समूह किसी व्यक्ति को या अन्य समूह को लक्ष्य बनाकर फिकरे उछालता रहता है... तानाकशी होती रहती है। भले ही इसे 'जस्ट किडिंग' का नाम दे दिया जाए, मगर यदि यह 'किडिंग' किसी व्यक्ति विशेष की जीवनशैली, बोली या शारीरिक संरचना पर व्यंग्य के बतौर की जा रही हो तो क्या वह व्यक्ति इसे सहन कर सकेगा?

मेघा एक दक्ष गृहिणी है। एक बार भोजन पर पधारे किसी दंपति के सामने सुदीप ने मजाक में कहा, "मैं तो इनका दास हूँ। तला-भुना, जला-कटा जो खिलाती है, खा लेता हूँ।" मेघा पर घड़ों पानी पड़ गया था। सुदीप के लिए वह दिन-रात खटती थी और उसने दूसरों के सामने... इस घटना के बाद कई दिन उनमें बातचीत बंद रही। जब आप गुस्से में होते हैं तब तो जबान को सुनहरा मौका मिल जाता है फिसलने का... आप सामने वाले की धज्जियाँ उड़ाते जाते है... उसके इतिहास-भूगोल एक कर डालते हैं और उससे अपेक्षा करते हैं कि आपके शांत होने पर वह आपको समझे, आपसे उसी सहृदयता से पेश आए... खासकर पति-पत्नी के बीच तो यह दृश्य आम है, मगर क्या सामने वाला व्यक्ति इतनी जली-कटी सुनने के बाद सहज हो पाएगा?

वास्तव में हर झगड़े की जड़ ये जबान ही है। यदि इसमें मिठास घुली रहे, बोल संतुलित और सभ्य हो तो कभी किसी झगड़े की नौबत ही न आए। इसीलिए दूसरों पर नियंत्रण से पहले स्व-नियंत्रण का फार्मूला अपनाएँ, जबान को काबू में करें। करना सिर्फ इतना है कि 'बोलने से पहले सोचें और गुस्सा आने पर मौन व्रत ले लें।'ये क्या कह दिया आपने!

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