Saturday, April 17, 2010

वाह रे अधिकारी

गरमी का पारा जैसे ही ऊंचा चढ़ा ,शिक्षा विभाग के अधिकारियों को स्कूल के बच्चों की सुध आई. झटपट स्कूल बंद करने का फरमान तो निकाल दिया गया मगर यहाँ भी झोल. आदेश दिया गया कि सारे सरकारी स्कूल तो तुरंत बंद कर दिए जाए , हाँ किसी भी निजी और सी. बी .एस. सी. स्कूल पर यह निर्णय मानने की बाध्यता नहीं है. तर्क यह दिया गया कि सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं के अभाव के रहते बच्चों के बीमार होने की आशंका ज्यादा है. अब ज़रा इन अधिकारियों से कोई यह पूछे कि क्या गरमी बच्चे पर प्रहार करने से पहले यह पूछेगी कि बेटा, सरकारी में पढ़ते हो या निजी में?
यूं भी सरकारी स्कूल केवल एक शिफ्ट के समय में यानी कुल चार घंटे लगते हैं जबकि सभी निजी स्कूलों का कम से कम समय ५ या ६ घंटे हैं. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ज्यादातर आसपास के इलाकों के ही होते हैं जबकि निजी स्कूलों में बच्चे (किसी सही नीती के अभाव में) १० से १५ कि. मी. की दूरी का सफ़र तय करके भी आते हैं . और यह सफ़र किसी वातानुकूलित गाडी में नहीं वरन तपती बस में तय किया जाता है. क्या उनके बीमार होने की आशंका नहीं होगी? निजी स्कूलों में नर्सरी, के.जी. की कक्षाएं भी चलती है और ये नन्हें-मुन्ने तपती-जलती गरमी में स्कूल जाने पर विवश हैं क्योंकि सिलेबस का पहाड़ खडा है. क्या इन्हें गरमी प्रभावित नहीं करती ? सरकारी स्कूलों में न तो बच्चों को नियमित उपस्थित रहने पर दबाव बनाया जाता है और न ही शिक्षा का स्तर ऐसा होता है कि उनके न जाने से विशेष नुकसान होता हो.
यह लिखते हुए क्षमा चाहूंगी मगर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अपने साधारण जीवन स्तर के चलते हर प्रतिकूलता (गरमी की भयंकरता भी) के आदी होते है मगर निजी स्कूलों के छात्र सुविधाओं के चलते परेशानी महसूस कर सकते हैं. जो बातें साधारण व्यक्ति सोच सकता है, वो अधिकारी न सोच पाए ऐसा हो नहीं सकता मगर वास्तविक कसरत है इन बेलगाम निजी स्कूलों पर दबाव बनाना , जिसमें सभी स्वयं को असमर्थ पाते हैं और इसके चलते हर आदेश केवल सरकारी स्कूल पर लागू कर छुट्टी पा लेते हैं क्योंकि हर निजी स्कूल के पीछे किसी रसूखदार का नाम जुड़ा है जिसे छेड़ने में अधिकारी भी डरते है. इसी के चलते इन स्कूलों में सरकार के आदेशों ( विशेषकर अवकाशों का ) की जमकर अवहेलना की जाती है और प्रशासन चुप रहता है. मगर गरमी का मुद्दा सारे बच्चों के लिए एक जैसा है अतः इसे स्कूल विशेष का मामला न बनाकर हर स्कूल पर लागू करना चाहिए.
भारती पंडित
इंदौर

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