Friday, May 20, 2011

अनुभव


कुछ जरुरी काम निपटा कर ग्वालियर से इंदौर लौट रही थी | पतिदेव ने जल्दबाजी में ऐसी बस में बिठा दिया था जिसने रात भर यहाँ-वहां रुक-रुक कर पूरी जान हलकान कर दी थी | सुबह होते ही वह बस ट्रेवल्स बस न रहकर यात्री बस हो गई थी जिसमे ड्राईवर जरा से रुपये बनाने के लिए देवास, शाजापुर ,इंदौर की लोकल सवारियां बिठाता जा रहा था| कल रात को जो सीट ४५० रुपये में खरीदी थी, अब मुझे मुंह चिढा रही थी| हर आने-जाने वाला जगह देखकर उसपर काबिज होना चाह रहा था | मेरे न चाहते हुए भी आखिरकार दो स्त्रियाँ धम से बैठ ही गई और धीरे-धीरे यूं पसरी कि वे प्रमुख यात्री और मैं उधारी की सीट वाली लगने लगी | मन में ट्रेवल्स वालों के लालच, गैर जिम्मेदारी के प्रति गुस्सा था और थकान ने हालत खराब कर दी थी | तभी देवास से एक महिला चढी जो महिला पुलिस की नीली ड्रेस में थी | वह भी जरा सी जगह देखकर मेरी सीट पर सट गई | अब मुझमें प्रतिरोध की शक्ति बची ही नहीं थी | तभी कंडक्टर टिकिट के रुपये उस महिला से माँगने आया | वह तेवर दिखाती हुई बोले, " जानते नहीं पुलिस स्टाफ में से हूँ? सरकारी काम से जा रही हूं | मुझसे रुपये मांगेगा ? " कंडक्टर चुप हो गया मगर मुझसे रहा नहीं गया | मैंने कहा , "पुलिसवालों को तो क़ानून का पालन करना और करवाना चाहिए | आप सरकारी काम पर जा रही हो तो उसके लिए आपको वेतन और भत्ता मिलता है | फिर यह गाड़ी सरकारी गाड़ी नहीं है.. तो फिर वर्दी की धौन्स क्यों ? ऐसे तो भ्रष्टाचार और बढेगा | " वह कटु शब्दों में बोली, आपको इतनी चिंता है तो मेरा किराया आप दे दो | भ्रष्टाचार बढ़ने या घटने का ठेका मैंने नहीं लिया हुआ है | " मैं चुप रह गई |
जरा ही देर में शिप्रा नदी का सूखा पुल आया | मटमैले पत्थरों से अटी पडी वह नदी मानों अपने सूखे नेत्रों से अपने अस्तित्व को बचाने की गुहार सी लगाती दिखी | नदी आते ही वह महिला पुलिस उठी और अपनी पर्स में से ५ रुपये का सिक्का निकालकर नदी में उछाल दिया और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी | मुझे हंसी आई सिक्के के दूसरे रूप को देखकर.. जीवित लोगों का हक़ मारकर यदि उस नदी को रूपया चढ़ा भी दिया तो क्या वह खुश होकर आपके घर में बरकत दे सकती है ? हम कब अपने विचार, व्यवहार और धारणाएं बदलेंगे?
भारती पंडित
इंदौर

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