Tuesday, March 1, 2011

Aalekh

भूख छपास की
आइए आज भूख की बात करते है..भूख केवल पेट की ही नहीं होती.. एक भूख होती है छपास की और मंच की. इस भूख को एक बीमारी भी कह सकते है, जिसका वाइरस अधिकतर साहित्यकारों को और कलाकारों को अपनी चपेट में लेता है.. कलाकार भी वे जिनके ढोल में पोल होती है. यह वाइरस धीरे-धीरे दिमाग में घर करता जाता है और सारे व्यक्तित्व पर हावी होता जाता है. इस भूख से पीड़ित व्यक्ति की आत्माभिमान करने के शक्ति बहुत बढ़ जाती है.. उसे अपनी कला पर आत्मविश्वास नहीं, अति विश्वास हो जाता है. वह दूसरों की सुनना बिलकुल बंद कर देता है और अपनी ढपली-अपना राग आलापना शुरू कर देता है. किसी समारोह में जाने पर उसकी पहली कोशिश होती है मंच पर चढ़कर माइक हथियाने की.. यदि सरलता से मिल जाए तो ठीक, अन्यथा वह "बस जरा सा कुछ कहना है" कहकर मंच पर चढ़ जाता है. कई बार तो इस मंच के लिए आयोजकों के कोपभाजन बनने से भी नहीं डरता . यह दीवानगी तब और बढ़ जाती है, जब समारोह को कवर करने रिपोर्टर्स आते है.. फिर तो धक्का-मुक्की करके ऐसी जगह पहुचने का प्रयास होता है कि कल के अखबार में मुखड़ा उनका ही चमकना चाहिए.. चाहे समारोह में कोई भागीदारी हो या न हो.. जब बहुत प्रयासों के बाद भी फोटो में जगह नहीं मिल पाती, तो सेटिंग करने से बाज नहीं आते.. और भगवान की दया से यदि किसी समारोह में कोई कविता सुनाने(मुख्य अतिथि के आने में देर होने पर) या गीत गाने का मौका मिल जाए, तो जोड़-तोड़ करके ,अपने प्रभाव या पद का उपयोग करके ऐसी जुगाड़ फिट करते है कि समारोह चाहे कोई भी हो, मुख्य धारा के समाचार में अपना नाम और फोटो डलवाकर ही दम लेते है.. आयोजक बेचारा अगले दिन का अख़बार देखकर बाल नोचकर रह जाता है .. उसके आयोजन के समाचार का बदला रूप देखकर सिवाय मन ही मन गाली देने के कर भी क्या सकता है .. मगर अगली बार उसे अपने आयोजन में कदम भी न रखने देने की कसम खा लेता है..
ये तो हुए लक्षण .. अब सवाल यह कि इस बीमारी का इलाज क्या हो..कई विशेषज्ञों से चर्चा करने के बाद पता लगा कि इस बीमारी का सिर्फ एक इलाज है और वो है अपने विषय में पारंगत होना.. जब मन में ज्ञान गंगा बहने लगेगी, तो व्यक्ति पठन-मनन में रूचि लेने लगेगा , जिससे संभवतः उसके मन की मलिनता दूर हो जाए और वह आत्म मंथन करने में सक्षम हो जाए. अपने आप को उस स्तर तक उठाने का प्रयास करने लगे, जब छपने के लिए उसे जोड़-तोड़ न करने पड़े, वरन लोग स्वयं उसके पीछे आने लगे..
खुद को कर इतना बुलंद कि आसमां लगे कमतर
उधारी से न भर दामन, बना खुद ही को बेहतर..
भारती पंडित
इंदौर

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