Monday, May 24, 2010

माँ गुजर जाने के बाद



ब्याहता बिटिया के हक में फर्क पड़ता है बहुत
छूटती मैके की सरहद माँ गुजर जाने के बाद

अब नहीं आता संदेसा मान मनुहारों भरा
खत्म रिश्तों की लगावट माँ गुजर जाने के बाद

जो कभी था मेरा आँगन, घर मेरा, कमरा मेरा
अब वहाँ अनदेखे बंधन, माँ गुजर जाने के बाद

अब तो यूँ ही तारीखों पर निभ रहे त्योहार सब
खत्म वो रस्मे रवायत, माँ गुजर जाने के बाद

आए ना माँ की रसोई की वो भीनी सी महक
उठ गया मैके का दाना, माँ गुजर जाने के बाद

वो दीवाली की सजावट, फाग के वो गीत सारे
हो गई बिसरी सी बातें, माँ गुजर जाने के बाद

3 comments:

  1. शीर्षक ने उत्सुकता बढाई और रचना ने रुला दिया .जिनके पास माँ है और जिनके पास माँ नहीं है दोनों के दिल को भर देगी ये रचना
    आभार

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  2. बहुत ही सुन्दर कविता।

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  3. kya kahun kitna roya ye padhne ke baad....kash har maa ki umr hazaro saalon ki ho jaaye......

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