मौन रहूँ अधरों को सी लूं
तुम कहते हो जी भर जी लूं
जीवन रूपी इस प्याले को
घूँट-घूँट मदहोश हो पी लूं |
तुम कहते हो ना देखूं मैं
जीवन के अंधियारे पहलू
दुनिया बदल चुकी है कबसे
मैं भी तो अब खुद को बदलूँ |
कैसे मोड़ सकूंगी मैं मुख
जीवन की सच्चाई से
व्याप्त हो रही दसों दिशाएं
जब क्रंदन-करुणाई से |
खुशियां सारी साथ तुम्हारे
मेरी करुणा मेरी साथी
जी लूंगी दुःख के सागर में
जैसे जिए दीए संग बाती |
वह विहान भी आएगा
हर प्रयत्न यश पाएगा
बदलेगी जीवन की रंगत
दुःख ही सुख हो जाएगा |
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