Friday, January 27, 2012

धूप - छांव

जीवन उम्मीदों का प्यारा सा गाँव है |
कभी धूप ग़म की है, कभी सुख की छाँव है ||

खेता जा पतवारें, क्यों माँझी तू हारे |
कभी घिरती भँवर में, कभी तीरे नाव है ||

सोच-समझ चलता जा चालें शतरंज की |
कभी शह है हिस्से में, कभी उलट दाँव है ||

हर डगर हो आसान , ऐसा हुआ है कब |
कभी फूल राहों में, कभी शूल पाँव हैं ||

Saturday, January 14, 2012

परिभाषा


गीता
मेरी कामवाली बाई की लड़की
जिसे देख अक्सर सोचती मैं
मैं भी लड़की , वो भी लड़की
फिर क्यों है अंतर इतना
कि हर सुबह मेरे हाथों में
आती है विद्या की सौगात
और उसके हिस्से में आती है
मैली सी एक झाडन..
मैं जहाँ स्कूल में अपना
भविष्य तराशती
वह चमकाती है मेरे
घर का हर एक कोना
मेरे महँगे कपडे
जो उसके लिए बनते है उतरन
मेरा स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन
जो उसके लिए है जूठन
उस पर भी भारी अचरज कि
सारी सुविधाएँ भी दे न पाती
मुझे वह चिर संतोष
जबकि अभावों में भी वह
रहती हँसती-खिलखिलाती
असंतोष की कोई किरण
चेहरे पर न दिखाती
एक दिन मैंने उसे रोका
और पूछ ही लिया अपना सवाल
वह झिझकी, ठिठकी, हिचकिचाई
कौतुहल से मेरी आँखों में झाँकी
हौले से दिखाई थी एक उँगली
ऊपर आसमान की ओर
दूसरे हाथ में फैला दी थी
कटी फटी हथेली अपनी
गोया कि कह रही हो
समय से पहले और किस्मत से ज्यादा
ना मिले पूरा, न खोए आधा
भाग चली थी वह
चेहरे पर वही मुस्कान लिए
मैं चकित थी उसकी सादगी पर
सवाल का उत्तर पा लिया था मैंने
मेरे पास साधन थे, उसके पास सुख-संतोष
अंतर यही है.. चाहे छोटा हो या बड़ा..

Wednesday, January 4, 2012

मेरा दर्द



मौन रहूँ अधरों को सी लूं
तुम कहते हो जी भर जी लूं
जीवन रूपी इस प्याले को
घूँट-घूँट मदहोश हो पी लूं |

तुम कहते हो ना देखूं मैं
जीवन के अंधियारे पहलू
दुनिया बदल चुकी है कबसे
मैं भी तो अब खुद को बदलूँ |

कैसे मोड़ सकूंगी मैं मुख
जीवन की सच्चाई से
व्याप्त हो रही दसों दिशाएं
जब क्रंदन-करुणाई से |

खुशियां सारी साथ तुम्हारे
मेरी करुणा मेरी साथी
जी लूंगी दुःख के सागर में
जैसे जिए दीए संग बाती |

वह विहान भी आएगा
हर प्रयत्न यश पाएगा
बदलेगी जीवन की रंगत
दुःख ही सुख हो जाएगा |