Sunday, September 11, 2011

ये रीत इस दुनिया की


वाह री दुनिया की रीत अजब
बस पत्थर पूजे जाते हैं ,
साकार ब्रह्म को ठुकराकर
मंदिर में शीश नवाते हैं ...

उस दीन-हीन की करुणा पर
कब ध्यान किसी का जाता है ,
सेवा के हित निर्बल की यहाँ
कब हाथ कोई बढ़ पाता है ,
काले धन को करते सफ़ेद
देवों को मुकुट चढाते हैं .
वाह री दुनिया की रीत .....

इस ओर दीनता का नर्तन
उस ओर बहे पानी सा धन ,
सुख-सुविधायुक्त सकल जीवन
फिर अंडर से कलुषित मन ,
रखते मानव को क्षुधा सिक्त
श्वानों को दूध पिलाते हैं .
वाह री दुनिया की रीत....

भारती पंडित

1 comment:

  1. भारती जी नमस्कार्। बहुत सुन्दर लाइनें हैं।कब हाथ कोई बढ़ पाता है ,
    काले धन को करते सफ़ेद देवों को मुकुट चढाते है।

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