Thursday, September 1, 2011

धार्मिक आयोजन : श्रद्धा का गणित या चंदे का

धार्मिक उत्सवों की शुरुवात हो चुकी है | अब यदि यदि रात के दस-ग्यारह बजे भी आपके घर की घंटियाँ बजानी शुरू हो जाए तो अचरज न करें .. खीझें भी नहीं .. अरे भाई यही तो समय है चन्दा माँगने का .. आप उनींदी आँखों से दरवाजा खोलते है, सामने खड़े हैं चुन्नू-मुन्नू-टुन्नू ...अंकल चन्दा .. वो आप दिन में नहीं मिलते तो सोचा अभी ले ले...
ये चन्दा गणेशोत्सव से लेकर नवरात्रि , दशहरा, होली किसी का भी हो सकता है | हो सकता है कि आप पिछले दिनों में ऐसी ही किसी न किसी टोली को चन्दा दे-देकर अपनी जेब से १००-२०० रूपए ढीले कर चुके हो सो दस-बीस रूपए पकड़ाकर जान छुड़ाना चाहेंगे तो ये बच्चे पीछे पड़ जाएंगे, बार-बार कहेंगे, घंटियाँ बजाएँगे | यदि फिर भी आप नहीं मानेंगे और बेशर्मों की तरह उनके मुंह पर ' भड़ाक ' से दरवाजा बंद कर देंगे तो ... तो ये बच्चे सचमुच शैतानी कर जाएंगे | ये शैतानी आपके घर के बाहर रखे समान को फेंकने से लेकर बल्ब तोड़ने , गाडी की हवा निकालने ,सामान चुराने या दीवारों पर गुटके की पीक थूकने तक कुछ भी हो सकती है | गोया आपसे चन्दा झटकना उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो और उसे न चुकाकर आप अक्षम्य अपराध कर बैठते हो |
इन गली मुहल्लों के आयोजनों के चलते देवी-देवताओं की ऐसी दुर्गति होती है कि शायद वे भी अपनी हालत देखकर रो पड़ते हो | २-३ हज़ार की आबादी वाली एक कालोनी में पंद्रह या सोलह जगहों पर गणेश जी/ दुर्गा जी बिठाए जाते हैं | हर टोली घूम-घूमकर दादागिरी से चन्दा इकट्ठा करती हैं फिर आपसी होड़ के चलते कानफोडू भजन लगाकर सारी कालोनी को हैरान करती है | टी.वी. की तर्ज़ पर प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है | सबसे ज्यादा अचरज इस बात पर होता है कि चंदे के अधिकतर समूहों की अगुवाई बच्चे या कालोनी के बेकामकाजी युवा करते हैं | क्या देवी-देवताओं की स्थापना के बाद उनकी विधिवत पूजा-अर्चना इन बच्चों द्वारा की जाती होगी ? क्या धार्मिक उत्सवों के उन मानदंडों को पूरा किया जाता होगा, जिनके लिए इन्हें शुरू किया गया था ?
९-१० दिनों के ध्वनि प्रदूषण के बाद हजारों की संख्या में जल में विसर्जित की जाती हैं प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्तियाँ , जो जल को प्रदूषित करने का काम बखूबी करती हैं और एक साल के उत्सवों के भयानक परिणाम नदी-तालाब सालों तक झेलते रहते हैं | ड्रामा अभी ख़त्म नहीं हुआ है | अब आती है बारी चंदे के बचे हुए पैसे बांटने की | यदि ईमानदारी से बंटवारा हुआ तो ठीक, अन्यथा हाथापाई से लेकर सिर फुत्तौवल तक सब कुछ देखा जा सकता है | यही नहीं .. ये पैसे लेकर बच्चे सिगरेट-बीडी के कश खींचते या पान गुटखा चबाते भी देखे जा सकते हैं | आज जब हम वैसे ही अवर्षा- अतिवर्षा- बाढ़-सूखे के रूप में प्रकृति की नाराजगी को झेल रहे हैं, क्या ऐसी सामजिक विकृतियों के प्रति जागरुक होना जरुरी नहीं है ? अब तो वैसे भी मिलने- मिलाने के लिए ऐसे उत्सवों के बहाने की जरुरत नहीं है .. तो फिर हर दस कदम पर होने वाले इन आयोजनों का विरोध क्यों न किया जाए? क्यों न अन्य धर्मों की तरह शहर के चार कोनों में या गिनी-चुनी जगहों पर इन उत्सवों का आयोजन हो और बाकी पूजा-अर्चना अपने घरों में ही पूर्ण शुद्धता व शुचिता से की जाए? आपको नहीं लगता कि ईश्वर तब शायद ज्यादा प्रसन्न होंगे ?
वास्तव में देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अपने वातावरण, पर्यावरण और संस्कृति को शुद्ध व स्वच्छ रखना हमारा कर्त्तव्य है | हमें जागरुक होना होगा, हर प्रदूषण को रोकना होगा.. विशेषकर धार्मिक आयोजनों को सही रूप में प्रस्तुत करने और उनसे कुछ ठोस ग्रहण करने पर विचार करना होगा .. अन्यथा देर हो जाने पर बिगड़ी बात फिर संवारी न जा सकेगी | बस हाथ मलने के अलावा कोई चारा न रहेगा हमारे पास..
भारती पंडित
Indore

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