Sunday, August 14, 2011

स्वतंत्रता के मायने


स्वतंत्रता दिवस की अल सुबह
मैं स्कूल जाने को थी तैयार ,
बस स्टॉप पर खड़ी थी
कर रही थी बस का इंतज़ार .
की एक बड़ा होता बच्चा
पास मेरे आया ,
छोटा सा एक तिरंगा
मेरे हाथों में थमाया .
बोला "दीदी स्कूल जा रही हो
आज के दिन ये तिरंगा क्यों भूले जा रही हो ..
तिरंगा देश की शान है ,
हर भारतीय की आन है ,
भारत की पहचान है ,
हम सबकी ये जान है "
उसका भाषण सुनकर मैं मुस्काई
हौले से थामा झंडा
और उससे मुखातिब हुई..
"बेटा बातें तो बड़ी अच्छी करते हो ,
संस्कारवान लगते हो ..
और क्या जानते हो स्वतंत्रता के बारे में ?
देश के सपूत लगाते हो
तभी देश के प्रति सुविचार रखते हो.."
मेरी बाते सुनकर वो बिदका
बोला " दीदी न करो टाइम खोटा..
समय है काम , काम है मोटा
ना मैं देश को जानूँ, न स्वतंत्रता पहचानूँ..
ये जो चार लाईने सुनाई है,
किसी नेता के भाषण से चुराई हैं ..
इसे सुनाने से बिक जाए झंडे,
इसीलिए मालिक ने सिखाई हैं..
देश स्वतन्त्र हो या परतंत्र
क्या फर्क पड़ता है ?
हम जैसों का पेट तो रोज़
गालियों से ही भरता है ..
बस साल में दो दिन आती है रौनक
जब तिरंगों की बिक्री होती है चकाचक
परिवार को मिलती है भूख से निजात
भाईयों के चेहरों की बदलती है रंगत ..
अगर यहीं स्वतंत्रता दिवस है तो
मैं चाहूँ यह हर रोज़ आए
बिकते रहे मेरे झंडे यूं ही
मेरे घर में भी रोटी महके,
मेरे घर भी लगे दाल को बघार
और मेरा परिवार भरपेट खाना खाए..

भारती पंडित

1 comment:

  1. true words .....जब तिरंगों की बिक्री होती है चकाचक
    परिवार को मिलती है भूख से निजात
    भाईयों के चेहरों की बदलती है रंगत ..
    अगर यहीं स्वतंत्रता दिवस है तो
    मैं चाहूँ यह हर रोज़ आए

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