Tuesday, August 2, 2011

सिंघम

कल फिल्म सिंघम देखी . मुझे तो फिल्म बहुत अच्छी लगी क्योंकि यूं भी मैं एक्शन फ़िल्में शौक से देखती हूँ.. सार्थक विषयों पर बनी फ़िल्में मेरी पहली पसंद है और उससे भी बढ़कर यह कि फिल्म का हीरो मेरा पसंदीदा शख्स है.. मगर सिनेमा हाल की बात करू तो इवेनिंग शो में भी ढेरों युवा दर्शक मौजूद थे, फ्रेंड्स ( ओफकोर्स गर्ल फ्रेंड्स भी ) के साथ .. मगर एक सच्चे इंस्पेक्टर के द्वारा क़ानून तोड़ने वालों की जो हालत की जा रही थी, उस पर खुश होकर हाल में जो तालियाँ पड़ रही थी, जो उत्साह भरी ' वाह-वाह' गूँज रही थी उससे लगा कि आज सचमुच इन पोलिटीशियंस ने देश की जो हालत कर डाली है, उससे देश का युवा सबसे ज्यादा त्रस्त है.. अब तक हमारे दिलों में युवा की छवि ' शाइनिंग इंडिया ' के भरपूर पॅकेज पाने वाले, अपने बारे में सोचने वाले.. तनिक स्वार्थी से समूह के रूप में ही बनी हुई है.. मगर ऐसे युवा शायद नगण्य से प्रतिशत में है.. बाकी युवक अब भी देश का विकास चाहते है, देश की हालत को सुधारना चाहते हैं... बस कमी है एक साहसी, ईमानदारऔर कर्मठ नेता की .. जो उन्हें मार्गदर्शित कर सकें... स्वयं भ्रष्ट हुए बिना विकास में मार्ग को प्रशस्त कर सकें.. और उसी सपनों के नेता की छवि उन्हें सिंघम के इंस्पेक्टर " बाजीराव " में दिखी हो...
एक विचार और भी आया मन में .. कि आज नेता के बाद अभिनेता ही सबसे सक्षम स्थिति में हैं जो धन- प्रतिष्ठा से लदे हैं .. क्या उनका कर्त्तव्य नहीं बनता कि देश में व्याप्त इस अंधेर राज के खिलाफ कोई तो आवाज उठाएं? जिस धरती और उसके नागरिकों ने उन्हें सिर -माथे पर बिठाया है, उसके प्रति उनका क्या कोई कर्त्तव्य नहीं बनता ?

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