Tuesday, August 16, 2011

alekh

गले- गले तक आया भ्रष्टाचार
अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में सारे देश में भ्रष्टाचार विरोधी लहर दौड़ रही है.. गाँव कस्बों तक से लोग सडकों पर उतारकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं | भ्रष्टाचार आज गले की फांस बन चुका है और भ्रष्ट नेताओं-अधिकारियों को सज़ा के दायरे में लाना इस आन्दोलन का पावन उद्देश्य है |
भ्रष्टाचार को उपरोक्त सन्दर्भ में केवल रूपए-पैसों के घोटाले , काला धन जमा करने आदि के रूप में देखा जा रहा है | मगर भ्रष्टाचार शब्द की व्याख्या करें तो यह भ्रष्ट + आचार से मिलकर बना है जिसका अर्थ है वह आचरण जो समाज अनुरूप न हो, जो गरिमा अनुरूप न हो , तर्क सम्मत न हो , पदानुरूप न हो वह समस्त आचरण भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है | अब यदि भ्रष्टाचार की विस्तृत और गूढ़ व्याख्या करते हुए अपने आसपास नज़र घुमा कर देखा जाए तो एक नन्हे बच्चे से लेकर एक वृद्ध तक सभी जीवन के हर पड़ाव पर किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार को सहते नज़र आते हैं |
बच्चा जब बड़ा होता है ,स्कूल जाता है तो वहां भ्रष्टाचार विविध रूप में सीना ताने खडा नज़र आता है | एक योग्य बच्चे को किसी प्रतियोगिता में केवल इसलिए भाग लेने से वंचित किया जाता है कि दूसरा बच्चा शिक्षक का कृपाभाजन है या वह शिक्षक दूसरे बच्चे के पालकों का कृपा भाजन है | ये नन्हे बच्चे तो बेचारे कदम-कदम पर पार्शेलिती ,फेवरेटिस्म जैसे हथियारों के शिकार बनाए जाते हैं | इस माहौल में बड़ा होता बच्चा जब आगे जाकर शिक्षकों का प्रतिकार करता है तो उसे इसी बात के लिए दण्डित किया जाता है | घर-परिवार की ही बात करें तो आपसी रंजिश, धन की असमानता , सास-बहू की लड़ाई का पहला शिकार बच्चे ही बनते हैं | क्या इस भ्रष्टाचार की रोकथाम संभव होगी ?
स्कूल से निकलकर बच्चे कॉलेज में जाते हैं | वहां भी दाखिले से लेकर परीक्षाओं तक क्या कुछ सहना नहीं पड़ता उन्हें ..शिक्षक की कोचिंग न जाए तो प्रेक्टिकल में अंक कम मिलते हैं..यदि सीनियर्स की दादागिरी न सहें तो कॉलेज में रहना मुश्किल .. आइडिया चोरी, प्रोजेक्ट की चोरी , नक़ल का दबाव .. इतना ही नहीं पी.एच.डी की डिग्री तक के लिए प्रोफेसर्स के घर का राशन-पानी, सब्जी भाजी लानी होती है | क्या इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा ?
पढ़-लिखकर बच्चे किसी संस्था में कार्य करने लगाते हैं | कई बार योग्य होने पर भी उन्हें महज इसलिए आगे नहीं बढ़ने दिया जाता कि वे अधिकारी की जी-हुजूरी नहीं करते या दफ्तर में हो रहे गलत को गलत कहने का साहस दिखाते है | ये बच्चे पहले-पहल तो जोश में अपने संस्कार, संस्कृति , मर्यादा पर अडिग रहकर ईमानदारी का दामन थामे रखने की पुरजोर कोशिश करता है मगर जब यह जिद लगातार घाटे का सौदा साबित होने लगती है तो वह भी धारा के साथ बहकर लाभ लेने में ही भलाई समझता है और इस तरह एक निहायत ईमानदार व्यक्ति भ्रष्ट आचरण अपनाने पर विवश कर दिया जाता है | क्या इस ईमानदारी को बनाए रखने के लिए समूची व्यवस्था को , कार्य प्रणाली को बदलने का साहस कोई अधिकारी दिखाता है ? शायद नहीं |
सरकारी दफ्तर हो, पुलिस स्टेशन हो , रेलवे रिजवेर्शन हो.. यहाँ तक कि धर्म स्थान के दर्शन क्यों न हो .. हर तरफ पैसों और ताकत का बोलबाला है | कमजोर और गरीब व्यक्ति को इस देश में जीने का अधिकार नहीं मिल रहा है | मजेदार बात तो यह है कि भगवान न करे यदि कोई व्यक्ति दुर्घटना का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो उसके शव को अस्पताल से वापे लेने तक के लिए उसके परिजनों को नाकों चने चबाने पड़ते हैं |
आज हम भ्रष्टाचार की हवा में सांस लेने के आदी हो चुके हैं | भ्रष्टाचार हमारी रग- रग में खून बनकर दौड़ने लगा है | मेहनत की अपेक्षा चापलूसी , रिश्वत जैसे शोर्टकट तरक्की के आसान उपाय सिद्ध होते जा रहे हैं और इस अंधी दौड़ के हम इतने अभ्यस्त होते जा रहे हैं कि हमें अब किसी भी बात से फर्क नहीं पड़ता | हम तभी जागते हैं जब चोट हमारे निजी स्वार्थ पर की जाती है |
कोयले की इस दलाली में सभी के हाथ-मुंह रंगे हुए है अतः सुधार का सूत्र पकड़ना बड़ा ही कठिन है | बच्चों में संस्कार रोपने से पहले घर के बड़ों को आचरण सुधारने होगा, शिक्षकों को छात्रों के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत करना होगा | कर्मचारियों को ईमानदार बनाए रखने के लिए ध्रुतराष्ट्र बने अधिकारियों को अपनी आँखों पर बंधी तृष्णा की पट्टी खोलकर समदृश्ता बनना होगा और सर्वोच्च सत्तासीन व्यक्तियों को समूची व्यवस्था को खंगालना होगा | सुधार की यह प्रक्रिया जटिल अवश्य है मगर कदाचित असंभव तो नहीं है |
भारती पंडित
इंदौर

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