याद आती है पिताजी की सूनी आँखें
( पितृ दिवस पर विशेष)
भारती पंडित
आजकल अक्सर याद आती है
पिताजी की सूनी आँखें
जो लगी रहती थी देहरी पर
मेरे लौटने की राह में।
आजकल अक्सर याद आता है,
पिताजी का तमतमाया चेहरा,
जो बिफर-बिफर पड़ता था,
मेरे देर से घर लौटने पर।
अब भली लगती हैं,
पिताजी की सारी नसीहतें
जिन्हें सुन-सुन कभी,
उबल-उबल जाता था मैं।
आजकल सहेजने को जी करता है
चश्मा, छड़ी, धोती उनकी,
जो कभी हुआ करती थी,
उलझन का सामान मेरी।
अक्सर हैरान होता हूँ इस बदलाव पर
जब उनके रूप में खुद को पाता हूँ।
क्योंकि अब मेरा अपना बेटा
पूरे अट्ठारह का हो गया है।
आदरणीया भारती पंडित जी
ReplyDeleteनमस्कार !
याद आती है पिताजी की सूनी आँखें पढ़ कर आंखें नम हो गईं … लगभग मेरी अपनी कहानी है ।
ये दो गुज़रे दिन बहुत सारे अश्क़ों की सौग़ात ले'कर आए हैं ।
आपने शस्वरं पर मेरी ग़ज़ल आए न बाबूजी पूरी सुन तो ली होगी ?
कृपया , एक बार फिर से सुन कर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी मेरी झोली ( टिप्पणी बक्से ) में डालदें ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं