Tuesday, July 30, 2013



 पदचिह्न 

उम्र छोड़ती जाती है  पदचिह्न
चेहरे पर हमारे कदम  दर कदम 
झुर्रियाँ , झाइयाँ ,धब्बे बनकर 
शायद  ही छुपा पाते हैं  प्रसाधन  उन्हें 

उम्र छोड़ती जाती है पदचिह्न 
शरीर पर हमारे कदम दर कदम 
मोटापा , रक्तचाप,संधिवात बनकर 
शायद ही मिटा पाती है दवाएँ जिन्हें 

कुछ पदचिहन छोड़ती है उम्र 
समझ पर भी कदम दर कदम 
बड़प्पन और सुन्दर विचार बनकर 
नहीं पड़ती जरुरत  छिपाने की जिन्हें 
क्योंकि 
जीवन सार्थक कहलाता है इनके होने पर ही 

भारती पंडित 

1 comment:

  1. बहुत अच्छी कविता ... जीवन के पढाव को सही शब्द देती हुई कविता .. मुझे तो बहुत अच्छी लगी .

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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