Monday, November 29, 2010

kavita

बिटिया की विदाई पर पिता का पत्र

मेरी नन्ही कली
अभी कल ही की तो बात है
परी सी आई थी आँगन में मेरे
जीवन को नंदनवन बनाने ,
तुतलाते शब्दों से कानों को
अमृतपान कराने ,
अभी कल ही की तो बात है.

तेरी खिलखिलाहटे जो जगाती थी घर को,
तेरी अठखेलियाँ जो मोहती थी मन को ,
तेरा रोना- हंसना रूठना -मनाना ,
मनोजीवित हो जाता था घर ,
अभी कल ही की तो बात थी .

बढ़ाने लगी तू पुष्पलता सी ,
रिश्तों के नए रंग सुवासित करती ,
कभी दोस्तों सा अधिकार जताती ,
कभी माँ सी डांट लगाती ,
कभी बची सी मचल भी जाती ,
अभी कल ही की तो बात है .

आज विदाई की इस बेला में ,
तेरा पिता निस्तब्ध अकेला है ,
ओंठों पर है आशीषों की झड़ी,
आँखों में स्मृतियों का मेला है ,
आज जो हुई पराई ,रौनक थी मेरे घर की ,
हाँ अभी कल ही की तो बात है ..

भारती पंडित

2 comments:

  1. होठों पर ढेरों आशीष
    और
    मन में विदाई का सोग लिए
    एक पिता के मनोभावों को
    बहुत सटीक शब्दों में दर्शाया है आपने ...
    संजीदा काव्य पर अभिवादन स्वीकारें .

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  2. nice one .....great spirit ...pita ke man ke bhavan ko bas ek beti hi samjh sakti ha itni bariki se......

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