ये शहर
पौ फटते ही शुरू हो जाती है
चहलकदमी शहर की
आँख खुलते ही नज़र आती है
गहमागहमी शहर की |
भागती बसें, दौड़ते रिक्शे ,
घिसटते कदम, लरजती साइकिलें
आदमी,औरत,मजदूर,बच्चे
अपनी राहों पर चल पड़ते सच्चे ,
दिन ढले लौटते पंख पसारे
बेनूर,निस्तेज,थके -हारे
रात गहराती है,सिमटती है ज़िन्दगी
सुबह की उम्मीद में ढलती है ज़िन्दगी |
इनकी शाम के साथ रौशन होती है एक सुबह
बारिश में बढ़ते कुकुरमुत्तों की तरह
बिखरती मस्तियां, छलकते है जाम
उमड़ते हैं सपने , ढलती है शाम
क्लब पार्टियों की रंगीन रातें
वो बिजनेस की डीलिंग, सौदे की बातें |
कुछ ऐसे ही रंगों से ढलती है रात
फिर उनकी सुबह को देती शुरुआत
चुपके से कह जाती है बात इतनी
कि उनकी सुबह से है रात इनकी |
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