अब बात ईश्वर की है अतः आवाज कम कर के रखो, यह कहकर बर्र के छत्ते में हाथ कौन डाले, सो अपने अपने घरों में भुनभुनाते बैठे रहते है.. हां तो बात चल रही थी भगवान की.. मेरे मन में यही विचार आया कि हम लोग इतनी दूर होकर भी आवाज से इतने परेशान हो रहे है, तो कुछ कदम पर बैठा भगवान बेचारा कितना परेशान हो रहा होगा.. और यह परेशानी भी एक दिन की नहीं, मोहल्ले में करीब २० धर्म स्थान होंगे, और हरेक जैसे एक दूसरे की होड़ में भोंपू बजाता ही रहता है.. मेरे मन में यह ख्याल भी आया कि ऐसा तो नहीं कि इस ध्वनि प्रदूषण के कारण भगवान के कर्ण यंत्रों ने काम करना बंद कर दिया हो .. इसलिए वे भूख,गरीबी,भ्रष्टाचार ,वेदना से पीड़ित जनता की आर्त पुकार भी नहीं सुन पा रहे हो? और नाराज होकर " जा, न मैंने कुछ सुना , न देखा " कहकर आंख-कान बंद कर बैठ गए हो?
वैसे आज तक यही सुना है कि प्रार्थना तो मन से की जाती है, तो ये भोंपू और ढोल-धमाको का हुड़दंग प्रार्थना के लिए क्यों ? मैं तो आजतक नहीं समझ पाई... आप को पता हो तो जरुर बताए ....
भारती पंडित
No comments:
Post a Comment