जब लेखन के क्षेत्र में उतरी तो पता चला कि चोरी का एक प्रकार रचनाओं की चोरी भी होता है.. वेब दुनिया पर ज्योतिष विषय पर छपने वाले मेरे ढेरों लेख इंदौर के लोकल समाचार पत्रों में यत्र-तत्र छापे हुए पाए जाने लगे और प्रायः परचून की दुकान से आये सामान के माध्यम से मुझे उनके दर्शन होने लगे. मैं तिलमिलाई तो बहुत .. संपादकों को फोन भी किया .. पर बस एक सॉरी उछाल दिया गया मेरी ओर..
अभी हाल ही में मुझे पता चला है कि संस्थाओं की सदस्यता , कार्यकर्ता होने का क्रेडिट भी चोरी किया जाने लगा है. हमारी संस्था जो समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करती है, उसका नाम हमारे एक परिचित बड़ी तन्मयता से अपने निजी लाभ के लिए उपयोग में ले रहे है और एक बार दी गई छोटी सी दान राशि के एवज में स्वयं को संस्था का सक्रिय कार्यकर्ता बताकर इनाम आदि भी जीत रहे हैं. अब प्रश्न यह है कि ऐसे लोगो के चलते हमारे जमीनी कार्यकर्ताओं के मन पर क्या बीत रही होगी , जो पहले दिन से संस्था से जुड़े हुए हैं और बिना किसी लाभ का गणित बिठाए निष्काम सेवा कार्य को अंजाम दे रहे हैं? मेरा रोष उन संस्थाओं पर भी हैं जो इनाम देने से पहले प्रतिभागी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों की जांच तक नहीं करती हैं और खैरात जैसे इनाम बाँट देती हैं. उनकी विश्वसनीयता कितनी खोखली है?
खैर तो हम बात कर रहे थे चोरी की .. तो साथियों , चोरी के इतने प्रकारों से मेरा वास्ता पड़ चुका है..ये लेख लिखते हुए ही पता चला कि पार्किंग में रखी मेरे बेटे की साइकिल अभी-अभी चोरी हो गई है.. अब ज़रा स्थिति का जायजा ले लूं.. फिर मिलते हैं..
भारती पंडित