मेरी नन्ही कली
अभी कल ही की तो बात है
परी सी आई थी आँगन में मेरे
जीवन को नंदनवन बनाने ,
तुतलाते शब्दों से कानों को
अमृतपान कराने ,
अभी कल ही की तो बात है.
तेरी खिलखिलाहटे जो जगाती थी घर को,
तेरी अठखेलियाँ जो मोहती थी मन को ,
तेरा रोना- हंसना रूठना -मनाना ,
मनोजीवित हो जाता था घर ,
अभी कल ही की तो बात थी .
बढ़ाने लगी तू पुष्पलता सी ,
रिश्तों के नए रंग सुवासित करती ,
कभी दोस्तों सा अधिकार जताती ,
कभी माँ सी डांट लगाती ,
कभी बची सी मचल भी जाती ,
अभी कल ही की तो बात है .
आज विदाई की इस बेला में ,
तेरा पिता निस्तब्ध अकेला है ,
ओंठों पर है आशीषों की झड़ी,
आँखों में स्मृतियों का मेला है ,
आज जो हुई पराई ,रौनक थी मेरे घर की ,
हाँ अभी कल ही की तो बात है ..
भारती पंडित