Monday, November 29, 2010

kavita

बिटिया की विदाई पर पिता का पत्र

मेरी नन्ही कली
अभी कल ही की तो बात है
परी सी आई थी आँगन में मेरे
जीवन को नंदनवन बनाने ,
तुतलाते शब्दों से कानों को
अमृतपान कराने ,
अभी कल ही की तो बात है.

तेरी खिलखिलाहटे जो जगाती थी घर को,
तेरी अठखेलियाँ जो मोहती थी मन को ,
तेरा रोना- हंसना रूठना -मनाना ,
मनोजीवित हो जाता था घर ,
अभी कल ही की तो बात थी .

बढ़ाने लगी तू पुष्पलता सी ,
रिश्तों के नए रंग सुवासित करती ,
कभी दोस्तों सा अधिकार जताती ,
कभी माँ सी डांट लगाती ,
कभी बची सी मचल भी जाती ,
अभी कल ही की तो बात है .

आज विदाई की इस बेला में ,
तेरा पिता निस्तब्ध अकेला है ,
ओंठों पर है आशीषों की झड़ी,
आँखों में स्मृतियों का मेला है ,
आज जो हुई पराई ,रौनक थी मेरे घर की ,
हाँ अभी कल ही की तो बात है ..

भारती पंडित

Thursday, November 4, 2010

kavita

कविता
इस बार दिवाली पर
इस बार दिवाली पर
घर को खूब सजाना,
झिलमिल दीपों से दमकाना ,
बस एक दीप सहेज लेना
उस अंधेरी दहलीज़ के लिए
जिसका मासूम चिराग
हाल ही में बुझ गया है .

इस बार दिवाली पर
खूब खुशियां मनाना ,
मिलना और मिलाना ,
बस कुछ पकवान सहेज लेना
उस घर के बच्चों के लिए
जिनका त्योहार भी जूठन पर मनता है.

इस बार दिवाली पर
अपने घर की पूजा के साथ
माँ लक्ष्मी का आह्वान करना ,
हे माँ इस दिवाली पर
उस मजदूर बस्ती में भी जाना ,
जहां गरीबी करती है तांडव ,
चरित्र -संस्कार चढ़ते हैं भेंट भूख की ,
आशा की उजास वहां भी फैलाना ,
माँ , उस बस्ती में भी जाना .
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भारती पंडित
३०१, स्वर्ण प्लाज़ा
स्कीम ११४-१, पावर हाउस के पास
प्लाट ११०९ ,ए.बी.रोड
इंदौर
मोबाइल :9926099018


कविता
आओ ज्योत जलाए

आओ हर दहलीज़ पर
जगमग ज्योत जलाएं .
गहन निराशा के तम में
एक आस किरण दमकाएं .
अज्ञान-अशिक्षा के तम को
शिक्षा की लौ से दूर भगाएं .
हिंसा में तपते जीवन को
शान्ति वृक्ष की छांव दिखाएं .
दुःख से बंजर बनते घर को
नंदन वन सा महकाएं ,
आओ ज्योत जलाएं.
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