आज मन उदास है
सारा परिश्रम व्यर्थ जा रहा
सफलता की नहीं कोई आस है
आओ सूरज को ढंकते बादलों को देखे
जो एकजुट होकर होड़ करते है
सर्व शक्तिमान सूरज से
और ढँक ही लेते है उसे
शक्ति को परिश्रम से हरा...
आज मन उदास है
परिस्थितियाँ प्रतिकूल जा रहीं
निराशा के गहन तिमिर में
आशा की नहीं उजास है ..
आओ वृक्षों का उलाहना सहते
नन्हें पौधों को देखे
जो झुक जाते हैं तूफ़ान में
इसीलिए फिर से लहलहाते हैं
बसंत आने पर ...
आज मन उदास है
उम्रभर दुनियादारी में रमा
पुण्य न कोई पास है ..
चलो कोई अंधेरी दहलीज़ करें रोशन
या किसी बिलखते बच्चे को दे
हंसी की सौगात
क्योंकि भगवान इन्हीं में बसते हैं
वे यहीं कहीं मिलते हैं...
भारती पंडित