Friday, March 30, 2012

राम नवमी के पावन अवसर पर मेरे द्वारा रचित संक्षिप्त रामायण आपके सामने प्रस्तुत है |

संक्षिप्त रामायण
शरयू तटे अयोध्या नगरी ,राजा दशरथ जिसके प्रहरी |
तीन रानियाँ सुघड़- सलोनी ,राज मंत्री जिनके बहुज्ञानी ||

पुत्र प्राप्ति हित यज्ञ कराये, चार सुयोग्य पुत्र तेहि पायो |
गुरु वशिष्ठ ने शिक्षा दीन्ही ,बने कुमार योग्य अति ज्ञानी ||

विश्वामित्र आए दरबारा,लियो साथ द्वय ज्येष्ठ कुमारा |
दंडक वन में करे विहारा,करे त्राटिका असुर संहारा ||

मिथिला नंदिनी जनक कुमारी ,हुआ स्वयंवर जिसका भारी |
शिव धनुष्य पर डोर चढ़ाए ,जनक कुमारी पत्निवत पाए ||

बढे राम गुरु अनुमति पाई , शिव धनुष्य पर डोर चढ़ाई |
हर्षित जनक नंदिनी आई , राम कंठ जयमाल चढ़ाई ||

दशरथ बहुविधि करे विचारा, राज-पाट सब राम सम्हारा |
दासी मंथरा दुर्बुद्धि जानी , कैकयी भाई स्वयं अज्ञानी ||

राज-पाट सब भरत संहारे, राम अभी जाए वन द्वारे |
आर्तनाद करते रहिवासी , व्यथित अयोध्या छाई उदासी ||

चले राम पितु आज्ञा पाए ,सिया-लखन राम संग आए |
पंचवटी में कुटी बनाई,हर्षित मुदित सिया बहुताई ||

शूर्पनखा विचरती थी वन में , राम-लखन भाये तन-मन में |
प्राण जानकी हरने आई,शूर्पनखा ने नाक कटाई ||

शूर्पनखा भागी बंधुमुख , व्यथा कहे रावण के सम्मुख |
रावण मृग सुवर्ण पहुँचायो ,राम-लखन कुटि दूर करायो ||

भिक्षु वेश रावण करि जाई, सीता हरण दुष्ट करि पाई |
व्यथित राम भटके वन-वन में ,हनुमत मिले साधु के वसन में ||

संग सुग्रीव मित्रता कीन्हीं , अरज सभी उसकी सुन लीन्हीं |
बाली मार राज पुनः लीनो ,हनुमत खबर सिया की दीन्हों ||

राम जलधि उर सेतु बनाए,सिया मुक्ति हित दूत पठाए |
गर्वित रावण करे हुँकारा, युद्ध यही बस हेतु हमारा ||

हुई गर्जना वीरों की तब , दिशा चहुँ होती थी झंकृत |
गूँजे बहुल शस्त्र टंकारा, चहु दिसी मचाता हाहाकारा ||

डस दिन भयो युद्ध अति भारी ,सकल असुर सेना संहारी |
रघुवर बाण अचूक चलायो, मृत्यु द्वार रावण पहुँचायो ||

रावण मरे मुदित हुई लंका ,सिया-राम का बजता डंका |
प्रिया जानकी सम्मुख आई, हर्षित मुदित हुए रघुराई ||

सिया-लखन सह देस पधारे ,अवध नगर के भाग सँवारे |
मंगल गाए अवध नर-नारी ,रघुवर चरण लायो सुख भारी ||

bharti pandit


Tuesday, March 27, 2012

यादें

जीवन की हलचल में कोमल से कुछ पल
छूते है दिल को और बनती है यादें |
समतल सी राहों में नुकीले से पत्थर
चुभते हैं पग में और बनती है यादें |
गर्म दुपहरी में एक ठंडा सा झोंका
सहलाए तन को तो बनती है यादें |
चन्दा की चमचम को नटखट सा बादल
ढंकता है आकर तो बनती है यादें |
मीठी और कड़वी ,खट्टी और तीखी
रसना के स्वादों सी होती हैं यादें |
अपनाए उनको जो मीठी हैं यादें
दिल को दुखाए ,वो यादें भुला दें|

यादें

जीवन की हलचल में कोमल से कुछ पल
छूते है दिल को और बनती है यादें |
समतल सी राहों में नुकीले से पत्थर
चुभते हैं पग में और बनती है यादें |
गर्म दुपहरी में एक ठंडा सा झोंका
सहलाए तन को तो बनती है यादें |
चन्दा की चमचम को नटखट सा बादल
ढंकता है आकर तो बनती है यादें |
मीठी और कड़वी ,खट्टी और तीखी
रसना के स्वादों सी होती हैं यादें |
अपनाए उनको जो मीठी हैं यादें
दिल को दुखाए ,वो यादें भुला दें|

Saturday, March 24, 2012

वह नवप्रभात


देखती हूँ जब लोगों को सफलता का दावा करते
अपनी अयोग्यता को दिखावे में छिपाते
उधार की वर्णमाला से अपना शब्दकोश सजाते
तो सोचने पर विवश हो जाती हूँ क़ि
क्या ज्ञान सचमुच हार गया है ?

जब देखती हूँ ज्ञान को धन से हारते
सत्य की आत्म को झूठ से मारते
हर तरफ़ दंभ और धोखे की धुंध फैलाते
तो सोचने पर विवश हो जाती हूँ क़ि
क्या सत्य सचमुच हार गया है ?

तभी निराशा की धुंध में हल्की रौशनी नज़र आती है
खूठ की कालिख में सत्य की लौ टिमटिमाती है
अँधेरे में उम्मीद की किरण झिलमिलाती है
जब दूर प्रभात में मंदिर की घंटियाँ टनटनाती है
और कानों में बच्चों की किलकारी गूँज जाती है |

तब सोचती हूँ मैं क़ि
हर अमावस के बाद ही तो चाँद आता है ,
गहन अन्धकार के बाद ही तो सूरज जगमाता है
आज नहीं तो कल वह प्रभात तो आएगा
असत्य के तिमिर को चीर सत्य दमदमाएगा ,
अज्ञान की ज़ंजीर तोड़ ज्ञान का परचम लहराएगा ,
वह नव प्रभात आएगा |

Tuesday, March 6, 2012

होली गीत


फागुन आयो रंग जमायो
गूँजे हँसी ठिठोली
ले पिचकारी रंगने निकली
हुरियारों की टोली

बिरज में कान्हा खेल रहे होली
उडी रे मेरी चूनर भीग गई चोली |

रंग अबीर ले कान्हा भागे ,गोरी हाथ छुडावे
नाजुक है कलाई करो ना बरजोरी ||

फर-फर उड़ता रंग-गुलाल, सर-सर रंगों की बौछार
उसे ना सताओ दुल्हन है नवेली ||

लाल-गुलाबी -नीला-पीले रंग चढ़े न कोई
श्याम तेरी सजनी श्याम रंग हो ली ||